भारत की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में नवरात्रि का स्थान सर्वोच्च माना गया है। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था का महासागर है, जिसमें डूबकर भक्त अपने जीवन को नई ऊर्जा और उमंग से भर लेते हैं। हर साल आश्विन मास में आने वाली शारदीय नवरात्रि भक्तों के लिए दिव्य अवसर लेकर आती है, जब सम्पूर्ण वातावरण माँ दुर्गा की भक्ति में रँग जाता है। इस दौरान मंदिरों में घंटियों की गूँज, घर-घर में दीपों की ज्योति और दुर्गा सप्तशती के मंत्रों की ध्वनि वातावरण को अलौकिक बना देते हैं।
नवरात्रि केवल देवी दुर्गा की आराधना भर नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, मन के नकारात्मक विचारों को दूर करने और जीवन में अटूट विश्वास, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करने का अद्भुत पर्व है। ऐसा माना जाता है कि इन नौ दिनों में साधक जो भी संकल्प करता है, वह माँ की कृपा से अवश्य सिद्ध होता है। इसीलिए नवरात्रि को भक्ति, साधना और विजय का प्रतीक कहा जाता है।

नवरात्रि 2025 की तिथियाँ और शुरुआत
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत सोमवार, 22 सितंबर 2025 से हो रही है। विशेष बात यह है कि इस बार नवरात्रि दस दिनों तक चलेगी, क्योंकि दशमी तिथि 2 अक्टूबर 2025 को पड़ेगी।
- महाअष्टमी व्रत – 30 सितंबर 2025, मंगलवार
- महानवमी व्रत – 1 अक्टूबर 2025, बुधवार
इन दिनों भक्त विशेष अनुष्ठान और कन्या पूजन कर माँ को प्रसन्न करते हैं।
कलश स्थापना का महत्व
22 सितंबर की भोर की पहली किरण से ही वातावरण में दिव्यता का संचार होगा, क्योंकि इस दिन कलश स्थापना का अद्वितीय और अत्यंत शुभ समय रहेगा। शास्त्रों में कहा गया है कि कलश केवल एक पात्र नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतीक है। इसमें जल, आम्रपल्लव और नारियल की स्थापना दरअसल देवी दुर्गा को अपने घर, अपने हृदय और जीवन में विधिवत् आमंत्रित करने का पावन संकेत है। इस वर्ष विशेष बात यह है कि माता रानी का आगमन गज (हाथी) पर हो रहा है। शास्त्रों में हाथी को शांति, समृद्धि, वैभव और स्थिरता का प्रतीक माना गया है। इसका अर्थ है कि इस नवरात्रि में माँ दुर्गा का आगमन भक्तों के जीवन में अपार सुख, धन, ऐश्वर्य और मानसिक शांति लेकर आएगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कलश स्थापना करने से घर में माँ लक्ष्मी का स्थायी वास होता है और परिवार के हर सदस्य पर देवी माँ की विशेष कृपा बनी रहती है।कलश स्थापना केवल पूजा का आरंभ नहीं, बल्कि यह पूरे वातावरण को दिव्यता से भर देने वाला वह क्षण है, जब लगता है कि स्वयं आदिशक्ति माँ दुर्गा आपके घर के द्वार पर विराजमान हो चुकी हैं। इसीलिए इसे नवरात्रि की सबसे पवित्र और आधारभूत क्रिया कहा जाता है
दुर्गा पूजा और अष्टमी-नवमी की भव्यता
मंदिरों और पंडालों में सप्तमी (29 सितंबर) को प्रतिमाओं की स्थापना होगी, जिसके बाद दुर्गा पूजा की शुरुआत होगी।
- महाअष्टमी (30 सितंबर) को संध्या कालीन पूजा का शुभ समय दोपहर 1:21 से 2:09 बजे तक रहेगा।
- महानवमी (1 अक्टूबर) को दोपहर 2:35 बजे तक व्रत और पूजा सम्पन्न करना विशेष फलदायी होगा।
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि केवल व्रत और पूजा का पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मा की यात्रा है। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की साधना करने से व्यक्ति अपने भीतर छिपी शक्ति, धैर्य और आत्मविश्वास को जागृत करता है। अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन से घर में सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक शांति का वास होता है।
कैसे मनाएँ नवरात्रि 2025
- कलश स्थापना (घटस्थापना): प्रतिपदा की सुबह स्नान करके पवित्र भाव से कलश स्थापना करें। कलश को माँ दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।
- घट में जौ बोना: मिट्टी में जौ बोकर उस पर जल छिड़कें। नौ दिनों तक यह बढ़ते हैं और इन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- नौ दिनों का व्रत: भक्त फलाहार या केवल सात्विक आहार लेकर व्रत करते हैं। यह शरीर को शुद्ध और मन को शांत करता है।
- दैनिक पूजा-पाठ: सुबह-शाम देवी दुर्गा के मंत्र, दुर्गा सप्तशती का पाठ, आरती और भजन गाना घर के वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
- माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा: प्रत्येक दिन देवी के अलग स्वरूप की पूजा करें। इससे जीवन में साहस, धैर्य, शक्ति और समृद्धि का संचार होता है।
- दीपक जलाना: अखंड ज्योति (घी का दीपक) जलाना नवरात्रि में बहुत शुभ माना जाता है। यह घर से अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
- भक्ति और साधना: पूजा के साथ-साथ ध्यान और जप करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है और आध्यात्मिक शांति मिलती है।
- दान और सेवा: नवरात्रि के दिनों में जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या दान करना पुण्यकारी माना जाता है।
- कन्या पूजन: अष्टमी और नवमी को छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उनके चरण धोना, उन्हें भोजन कराना और उपहार देना अत्यंत शुभ और फलदायी है।
- नवरात्रि का समापन (हवन/कन्या भोज): अंतिम दिन हवन करना और कन्या भोज करवाना नवरात्रि को पूर्णता प्रदान करता है।