जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जब भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। यह पर्व हर साल बड़े ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी पर बेहद शुभ योग बन रहे हैं, जो भगवान कृष्ण के जन्म के समय के योगों के समान हैं। इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। इस बार के विशेष योगों में व्रत रखने से भक्तों को व्रत का चार गुना अधिक फल प्राप्त होगा।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को पूर्ण करने का तरीका
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत से एक दिन पहले, सप्तमी तिथि को हल्का और सात्विक भोजन करें। रात्रि में स्त्री संग से परहेज करें और मन व इंद्रियों को नियंत्रित रखें। व्रत वाले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर, देवताओं का स्मरण करते हुए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। मध्याह्न में काले तिल के जल से स्नान करके, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी और उनके चरण स्पर्श करती हुई लक्ष्मी का भाव हो। इसके बाद विधिपूर्वक पूजन करें।
कृष्ण जन्म का मुहूर्त
इस वर्ष कृष्ण जन्म का शुभ मुहूर्त रात्रि 11:47 से 12:30 बजे के बीच है। इस समय, रात्रि 12 बजे के आसपास खीरे के अंदर लड्डू गोपाल की मूर्ति रखकर श्री कृष्ण का जन्म कराएं। जन्म के बाद बाल गोपाल का स्नान कराकर, वस्त्र पहनाकर आरती और पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी का क्रमश: नाम लेना आवश्यक है। शंख में जल, फल, कुश, पुष्प और गंध डालकर, दोनों घुटनों को जमीन पर लगाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के बाद पिसे हुए भुने धनिये की पंजीरी का प्रसाद अर्पित करें और भजन-कीर्तन, स्तोत्र आदि का आयोजन करें। अगले दिन, पूर्वाह्न में स्नान करके व्रत का पारण करें। इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी, और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया और खाया जाता है।