कल है अजा एकादशी, यहां पढ़ें व्रत की कथा

कल है अजा एकादशी, यहां पढ़ें व्रत की कथा

भाद्रपद महीने में दो एकादशी आती हैं। जन्माष्टमी के बाद पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इस साल अजा एकादशी 29 अगस्त को मनाई जाएगी। अगर आप भी व्रत रख रहे हैं, तो यहां व्रत की कथा पढ़ सकते हैं। कहा जाता है। यह एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। इस दिन का विशेष महत्व होता है और इसे विधिपूर्वक व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत के पालन से जीवन में सुख-समृद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है।

जानिए अजा एकादशी महत्व

एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण उपवास का दिन है, जो हर महीने की दोनों पक्षों (शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष) की ग्यारहवीं तिथि को आता है। इसका महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक है।

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इसे रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं। एकादशी के दिन उपवास रखने से व्यक्ति की आत्मा और मन की शुद्धि होती है। इसे आत्म-नियंत्रण और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। उपवास के माध्यम से व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाकर आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है। एकादशी का व्रत करने से शारीरिक स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है।

उपवास से शरीर को विषैले पदार्थों से मुक्ति मिलती है और पाचन तंत्र को आराम मिलता है। कुछ लोग केवल फलाहार या जल का सेवन करते हैं, जो शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक होता है। एकादशी हिंदू संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। इसे न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्व दिया जाता है। परिवार और समुदाय मिलकर एकादशी का व्रत और पूजा करते हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। एकादशी व्रत से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें प्रमुख रूप से “पद्म पुराण” और “स्कंद पुराण” का वर्णन मिलता है। इन कथाओं में बताया गया है कि भगवान विष्णु ने अपने भक्तों को पापों से मुक्ति दिलाने के लिए एकादशी व्रत का मार्ग प्रशस्त किया।

राजा हरिश्चंद्र की एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में अयोध्या नगरी में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और धर्मपरायण थी। राजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। राजा हरिश्चंद्र इस अकाल से चिंतित होकर समाधि में बैठ गए और भगवान से प्रार्थना करने लगे।

उसी समय देवर्षि नारद वहां पहुंचे और राजा से बोले, “हे राजन! आप एकादशी का व्रत करें और भगवान विष्णु की आराधना करें। इससे आपके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और राज्य में सुख-शांति स्थापित होगी।”

राजा हरिश्चंद्र ने नारद जी की बात मान ली और विधिपूर्वक एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में फिर से वर्षा हुई, जिससे अकाल समाप्त हो गया। प्रजा सुखी हो गई, और राजा के जीवन में भी सुख-समृद्धि लौट आई।

इसके बाद, राजा हरिश्चंद्र ने नियमित रूप से एकादशी व्रत करना शुरू कर दिया। उनके इस व्रत पालन के कारण उन्हें अनेक संकटों से मुक्ति मिली। एक बार उन्हें अपनी सत्यनिष्ठा की परीक्षा में परिवार और राज्य से भी वंचित होना पड़ा, लेकिन उन्होंने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा। अंत में, भगवान विष्णु की कृपा से राजा हरिश्चंद्र को अपना खोया हुआ राज्य, परिवार और प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हुई।

इस कथा से यह सिद्ध होता है कि एकादशी व्रत के पालन से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन के सभी कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हुए एकादशी व्रत का पालन करने से भगवान की अनुकंपा प्राप्त होती है।

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